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सहज होना

सहज होना, सहल होना, न आसां है सरल होना । ना अमृत हाथ आ पाए, है दुनिया का गरल होना। सदा ही धार पर रहना, सदा मझधार में बहना। घिरे रहना है कीचड़ से, यूं जैसे कि कमल होना । बड़ी होशियार ये दुनिया तेज़-तर्रार ये दुनिया। है जीना ही बड़ा मुश्किल, तुम्हें होगा चपल होना । हैं पत्थर के दिलों वाले, बड़े ही हौसलों वाले।  तुम्हें दुख-दर्द ही देगा, हृदय का यों तरल होना । ये झूठा वायदा देंगे,  तुम्हारा फायदा लेंगे।  गढ़ेंगे सैकड़ों किस्से, मगर मुश्किल अमल होना। तुम्हें ना ज्ञान है छल का,  न ही संज्ञान कपट–बल का।  कोई धोखा न दे जाए, जरूरी है संभल होना। मगर फिर भी सरल होना,  सहज होना, सहल होना। नहीं देना कभी धोखा, नहीं कोई नहीं ज़हर बोना। –नेहा दशोरा

जल्दी क्या है?

जल्दी क्या है, कहां है जाना? कैसी नगरी कौन ठिकाना? भागे जाना, भागे जाना  रुकने का ना कोई बहाना। इतनी जल्दी फिर भी ठहरे,  रोज़ाना की वर्दी पहरे। दिन उगता, दिन ढल भी जाता ना मिलता बस कोई मुहाना। मैं भी दौडूं, तुम भी दौड़ो, मुट्ठी से रेती को छोड़ो। सबकी उम्रें फिसली जाती, गुज़रा जाता यूं भी ज़माना। उलझन में हैं हम, और तुम भी, खोया है मन, और है गुम भी। इसके–उसके राग हो गाते, भूल गए हो अपना तराना। फिर मंज़िल को पूगे हो जब, रीत चुके हो, सूखे हो तब। वो रस्ते क्या तुमने चुने थे? या तुमको था रीत निभाना? क्या है जीवन? क्या सार है इसका? पलड़ा भारी, या इसका, उसका। है रस्साकशी, है खींचातानी, बस खुद को है श्रेष्ठ बताना। लेकिन क्या बस सार यही है? ना–ना मेरे यार, नहीं है। तुमको, हां तुमको ही तो, लिखना होगा अपना गाना। जल्दी क्या है? क्यों भागे हो? सोते में भी क्यों जागे हो? जीवन को जीना होता है, ना कि इसको है निपटाना। जब हो जहां, वहीं रह लो ना, जो कहना है, वो कह लो ना। ऊब गए हो इन पचड़ों से, बंद करो अब खुद को छिपाना। जल्दी में भी हो, ऊबे भी, हरदम चिंता में डूबे भी। तुमसे है ये दुनिया, दुनिया, फिक्रों म