पुनरावृत्ति

फिर–फिर लौट के आना,
फितरत है मौसम की।
रुक जाना है 
प्रलय...

फिर–फिर चलते जाना,
आदत है सांसों की।
रुक जाना है 
अंत...

फिर–फिर बढ़ते जाना,
चाहत है कदमों की।
रुक जाना है
पराजय...

फिर–फिर खिलते जाना,
रौनक है बगिया की।
झड़ जाना है
नियति...

– नेहा दशोरा


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