जब मां थी...



मां थी तो सब अच्छा था,
मां थी तो मन बच्चा था।
मां थी तो क्या ठाठ थे,
सरल सभी पाठ थे।

मां थी तो मनुहार थी,
मां की वो पुकार थी।
मां थी जब वो हंसती थी,
घर में रौनक बसती थी।

मां थी तो उजास था, 
मां थी तो उल्लास था।
मां थी थाल में रोटी थी 
मां थी, तो मैं छोटी थी।

मां थी तो सत्कार था, 
मां थी तो अचार था। 
मां थी तो ना फिकरें थी,
घर बाहर की ख़बरें थी।

मां थी सही सलाह थी, 
मां थी आसां राह थी। 
मां थी और हम बच्चे थे, 
प्रेम भाव सब सच्चे थे।

मां थी तो कर्मठता थी, 
मां थी तो जीवटता थी। 
मां थी तो हिम्मत थी, 
ना कोई भी ज़हमत थी।

मां थी तो थकन ना थी, 
मां थी तो तपन ना थी। 
मां थी, उसका आंचल था,
कड़ी धूप में बादल था।

मां भी तो गांव था,
मां थी तो अलाव था।
मां थी तो कोमलता थी,
मां थी तो चंचलता थी।

मां थी तो गम मद्धम था,
जीवन में कुछ ना कम था।
मां थी नेह का सागर था,
मां थी तो घर, घर था।

                     ~नेहा दशोरा

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