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Showing posts from February, 2022

एक प्रार्थना

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वर देना, पर देना  शब्दों को स्वर देना। कर्म और मन, बुद्धि को दृढ़ता से भर देना। विद्या और मेधा पाएं लक्ष्यों को भेदा जाए। स्थिर हों चित्त और चिंतन ऐसा कुछ कर देना। कला का आगाज़ हो,  गुणों को परवाज़ हो। सुलझे और सुथरे हो मन भटकों को घर देना। शांति संदेश देना, क्रांति आदेश देना। जब जो ज़रूरी है वैसी गुज़र देना । ज्ञान और विज्ञान देना,  सच का संज्ञान देना।  पढ़-लिख पाएं सभी,  सबको आखर देना। दे देना सद्बुद्धि , हर लेना दुरबुद्धि।  ना खोदे कोई खाई, संकट सब हर लेना। संगीत लहरी देना,  समझ भी गहरी देना। नवरस का स्वाद देना आनंद अमर देना । सब ओर उजास होवे, मन ना उदास होवे। सबके दिलों में वो,  सुख का निर्झर देना। कलम को धार देना, शब्दों को भार देना। शुचिता का वर देना बुद्धि प्रखर देना। सबको हुनर देना हुनर को पर देना। जो बीज बोता है,  उसको समर देना। –नेहा दशोरा

जीवन का सार

उपमाऐं कुछ नहीं शेष,  क्या लिखूं कहूं अब क्या विशेष?  संघर्ष लिखूं इस जीवन को,  या कहूँ प्रगति का श्रीगणेश? धरती की पहचान लिखूं विधाता का अनुसंधान लिखूं? मानव के बढ़ते कदम गिनूं,  कि संस्कृति का अवसान लिखूं? कातरता अवसाद कहीं,  कष्टों की करुण कहानी। हर्ष और उल्लास कहीं, आल्हाद है ये ज़िंदगानी। जीवन अनंत का सार लिखूं,  या लघु जीवन का प्रसार लिखूं? निराकार की रचना है, या स्वयं प्रभु साकार लिखूँ? लिख दूं जीवन छोटा सा है, या इसके वैराट्य को दूं बखान?  जीवन के माने लिखने हों तो, छोटा पड़ता जग का ज्ञान। हर इक जीवन अपने में, एक अमिट कहानी कहता है। ठोकर खाकर गिरता तो है,  पर आगे बढ़ता रहता है। तो जीवन की हर परिभाषा हम ही लिखते, गढ़ते हैं। सच है जीवन जीते हैं तब जब कि खुद को पढ़ते हैं। –नेहा दशोरा

खो देना...

जो खोते हैं, क्यों खोते हैं?  खो देकर फिर, क्यों रोते हैं ?  जो खोया है साथ नहीं है,  जो पाया, वो बात नहीं है।  मोल-तोल के इन झगड़ों में, इसके ना उसके होते हैं। ये मानुष का मन है ऐसा,  जिससे मिलता ढलता वैसा, रंग चढ़े ही है संगत का,  खोकर भी वो ना खोते हैं। माना वो अब साथ नहीं है, खोना–पाना हाथ नहीं है। फिर भी खोने या पाने पर,  फूट पड़े मन के सोते हैं। खो देना क्या खो देना है ? पा लेना क्या पा लेना है ?  जो ना है वो ना होना था,  होने थे जो वो होते हैं। वो खोया है, ये है पाया,  कहते इसको दुनिया-माया । होगा अदा जो बदा हुआ है,  जीवन के से सब गोते हैं।   वो मिट्टी था या सोना था, जो खो बैठे वो खोना था। जो खोया है, ना खोया है, जीवन में वो भी बोते हैं। कुछ पा करके कुछ खोते हैं, पर खोने को ही रोते हैं। मानव मन यों भी होते हैं, मानव मन यों ही होते हैं। –नेहा दशोरा