कणिकाएं –२
कितने फन कुचल के आगे बढ़ी है वो,
हर वार से संभल के देखो खड़ी है वो।
उसके जो कर्ज़ हैं, कैसे चुका सकोगे?
जब जंग थी तुम्हारी डट कर लड़ी है वो।
–नेहा दशोरा
कितने फन कुचल के आगे बढ़ी है वो,
हर वार से संभल के देखो खड़ी है वो।
उसके जो कर्ज़ हैं, कैसे चुका सकोगे?
जब जंग थी तुम्हारी डट कर लड़ी है वो।
–नेहा दशोरा
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