मैं भी हूं

मेरे सपने काट-छांट कर तेरे सपने बनते हैं।

मेरी आंखो की छलनी से तेरे आंसू छनते हैं। 

मेरे अरमानों के जब तुम पंख बांध कर उड़ते हो, 

आंसू और मुस्कानों में, युद्ध कई तब ठनते हैं।


तेरी आंखों के प्याले जब आंसू छलकाने लगते हैं, 

मेरे मन के सारे अरमां, एक ठिकाने लगते हैं।

मेरे श्रम को सेतु बना, जब तुम आगे बढ़ जाते हो। 

मन खुश हो ना पाता है, हम भी गम खाने लगते हैं।


कोई बात तुम्हें चुभ जाती है तो, मेरा मन बुझ जाता है। 

और तुम्हें हंसाने की कोशिश में हर आँसू चूक जाता है। 

फिर भी तुम मेरी खुशियों की कद्र नहीं कर पाते हो तो, 

मन के कोने से फूट पड़ा, उल्लास कहीं रुक जाता है।


मेरी सारी बातों में बस तेरा किस्सा होता है।  

मेरी हर एक ख्वाहिश में तेरा भी हिस्सा होता है। 

एक तो दर्द दिये जाता है, दूजा दर्द पिये जाता है, 

लेकिन सच्चा स्नेह अगर हो, दर्द भी एक सा होता।  

ना केवल खुशियां बंटती है, गम में भी हिस्सा होता है।


– नेहा दशोरा 


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