अगर मेह तकने की फ़ुर्सत नहीं है...

अगर मेह तकने की फ़ुर्सत नहीं है,

फिर तो कोई भी मसर्रत नहीं है।

तुम्हें जिंदगी की क़ुर्बत नहीं है,

खुशियों की भी फिर सोहबत नहीं है।


अगर हम में तुम में नुसरत नहीं है,

तो समझो कि फिर तो उसरत बड़ी है।

अगर आदमी में मुरव्वत नहीं है,  

दुनिया में कुछ भी सलामत नहीं है।


अगर हममें थोड़ी सदाक़त नहीं है, 

हमारे दिलों में शराफ़त नहीं है।

अगर इतनी सी भी लियाक़त नहीं है, 

तो फिर काम की ये ज़ेहानत नहीं है। 


इंसानियत की गर अलामत नहीं है,

गर क़ौल-ओ-फ़े'ल में शबाहत नहीं है।

दुनिया को उनकी ज़रूरत नहीं है, 

कि जिनके दिलों में उल्फ़त नहीं है।


अगर मेह तकने की फुर्सत नहीं है, 

परिंदों को सुनने की आदत नहीं है। 

तिजारत से थोड़ी भी फुरक़त नहीं है,

तो जिंदगी में ज़हमत बड़ी है।

अगर मेह तकने की फ़ुर्सत नहीं है, 

फिर तो कोई भी मसर्रत नहीं है।

                                 ~नेहा दशोरा


मसर्रत–खुशी

क़ुर्बत–क़रीबी

सोहबत–साथ

नुसरत–मदद,समर्थन

उसरत–कठिनाई

मुरव्वत–लिहाज, शील

सदाक़त–सच्चाई

शराफ़त–भलाई

लियाक़त–खूबी, लायकी

ज़ेहानत–अक्लमंदी

अलामत–लक्षण

क़ौल-ओ-फ़े'ल–कथनी और करनी 

शबाहत–समानता

उल्फ़त–प्रेम

तिजारत–व्यापार

फुरक़त–दूरी

ज़हमत–झंझट

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