कई करणो न कई नी करणो...


झुकवा करतां  तो डटणो भलो, 
बेमन ऊं करवा करतां नटणो भलो। 
मन भेद ऊं तो बाड़ भली, 
अणबोलण ऊं तो राड़ भली।

बरत-उपवास तो सब करणो छावे,
पण दूजां ने नी तलणो छावे। 
अस्या बरतां ऊं तो जीमण भला, 
अस्या उपवासां ऊं तो खावण भला।

आलस करतां तो दोड़णो भलो, 
गलत आदतां ने छोड़णो भलो। 
बेठा रेवा करता कई करणो भलो, 
बुद्धि ने ज्ञान ऊं भरणो भलो।

सुख नी दे सक्या तो कई बात नी,
कम वे रिप्या तो कई बात नी। 
पण दुख कीने देणो कोनी, 
रिप्यो उधार बि लेणो कोनी।

अठे उठे जीव देणो नी छावे, 
मन घणो चंचल वेणो नी छावे। 
मन में कई ओर वे, केवे कई ओर, 
अस्या मनखां को कठे ई नी ठोर।

दूजां की पंचायती करता फरो, 
आखा गाम में तो फरता फरो। 
पण आपणा घर नेई देख लो, 
आपणे बारणे ई पग टेकलो।

पीठ पाछे जेर घोलणो गलत, 
दो जणा के बच्चे बोलणो गलत। 
जो वे मूंडे के देणी ई भली, 
जो वे जस्यी वे, वेणी ई भली।
                           ~नेहा दशोरा

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