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छोटे या बड़े?

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तुम्हारे गर्व छोटे हैं, छोटे हैं तुम्हारे सुख।  तुम्हारे दर्प छोटे हैं,  छोटे हैं तुम्हारे दुख। हैं सोचें भी बहुत छोटी, मन भी है तेरा छोटा।  तेरी धरती भी छोटी है,  गगन भी है तेरा छोटा। है छोटापन भी बातों में,  हंसी में और ठहाकों में। तुम्हारी गूंज है छोटी, है छोटापन धमाकों में। तुम्हारे रंग छोटे हैं, तुम्हारे ढंग छोटे हैं। तुम्हारे साथ छोटे हैं,  तुम्हारे संग छोटे हैं। तुम्हारी दृष्टि है छोटी,  तुम्हारी सृष्टि है छोटी।  तुम्हारे परदे छोटे हैं,  तुम्हारी पुष्टि है छोटी। बड़े होने का मतलब है,  नहीं पदवी बड़ी पाना। बड़े होने का मतलब है, नहीं पैसा कमा पाना। बड़ा होता है  इंसां  जब कि, वो रखता बड़ा दिल है।  बड़ा होना नहीं आसां,  बड़ा होना ही मुश्किल है। बड़ा होता नहीं इंसां,  फ़क़त  उम्रें बड़ी करके।  बड़ा होना नहीं होता,  इमारत ही खड़ी करके। बड़ी सोचें ज़रा रखना, बड़े अभ्यास भी करना। बड़ा रखना इस ज़ेहन को, बड़े आभास भी करना। सुनो ऊंचे ज़रा उठना,  औ खुद से रू-ब-रू होना। बनाना खुद को यों बेहतर, कि एक दिन सुर्ख़रू होना।                           ~नेहा दशोरा

वे लोग...

वे लोग थे,  हीरे से। सशक्त और दीप्त,  उत्कृष्ट और उद्दीप्त।  वे लोग थे,  सागर से।  अथाह और गंभीर,  और न खोते धीर।  वे लोग थे,  वृक्षों से।  करुण और उदार,  मन में परोपकार।  वे लोग थे,  संगीत से।  मधुर और सुखद,  भुला देते थे विपद।   वे लोग थे,  कथाओं से। रोचक और अमूल्य,  इसलिये थे अतुल्य। वे लोग थे,  गगन से। अनंत और उदात्त, विचारों से विराट। वे लोग थे,  पर्वत से। अडिग और विशाल,  सदा ही ऊंचा भाल। वे लोग थे,  पवन से। पछुवा या पुरवाई,  सदैव शांतिदायी। वे लोग थे, विश्वास से। गहन और घनीभूत,  भरोसा ज्यों अटूट। वे लोग थे, रंगों से। चटक और चंचल,  हर एक का संबल। वे लोग थे, उड़ान से। ऊंचे और उन्मुक्त, चेतना से युक्त।               ~नेहा दशोरा

ये क्यों है?

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खुद ही से खुद को झुठलाना, ये कैसी लाचारी है?  कथनी करनी भेद दिखाना,  ये कैसी होशियारी है? निर्बल ऊपर रौब जमाना, ये कैसी दमदारी है?  औरों की गठरी हथियाना,  ये कैसी ऐयारी है? अपनी ढपली राग भी अपना, ये तो एक फनकारी है।  लेकिन औरों को धकियाना,  ये तो बड़ी मक्कारी है। सोचो तो कितना ही सोचो,  दुनिया में गम भारी है। हर एक को ये लगता है कि, दर्द से उसकी यारी है। हम इस दुनिया के बंदे हैं,  और ये दुनिया प्यारी है।  उसने हमको जो बख्शा है,  हम उसके आभारी हैं। लालच के आगे ढह जाए, ये कैसी खुद्दारी है?  अपना कहकर पीठ दिखाए,  ये तो बड़ी गद्दारी है। चकाचौंध के पीछे भागे,  दुनिया को बीमारी है।  अपने हित को हामी भरते,  दूजे को इंकारी है। यों ही धरा ये रह जाना है,  जो कुछ भी संसारी है।  एक दिन सहसा कूच करेंगे,  फिर कैसी तैयारी है?                        ~नेहा दशोरा

या जमीं

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ईं जमीं में घणो जोर हे, ईं की तो बात और हे।  पण होचो क थां कई करोगा, जदी पाणी के बाते तरस्यां मरोगा। या जमीं तो हगला ने जीवावे हे, ईं के तो हर कोई खटावे हे।  पण होचो क थां कई करोगा,  जदी भाटा ढीन्डा में फरता फरोगा। ईं जमीं के तो हगला खटावे हे, कतरा जीव जनावर या जीवावे हे। पण नार, चीतरा जो मारया करोगा, तो दूजा जीवां ऊं बोझ्या म रोगा। या जमीं तो फेर हरी वे जाई,  ईं मे तो ओर बीज रे जाई। पण होचो क थां कई करोगा,  खावा बाते अन्न होदता फरोगा। या जमीं तो आपूं आप जी लेई, ईं को तो बगड़े नी कई।  पण होचो क थां कई करोगा, जद घर में घुस्या पाणी बचे तरता फरोगा। या जमीं खाली मनखां के बाते नी हे, अठे बाघ, हियाल्या, चड़ी-चड़कल्या बी हे। जो याँकि जगां पे कब्जा करोगा,   याने थांका घरे आवा ने मजबूर करोगा। या जमीं तो आपां सबने पाले है, या ईज थांको माको जीव हमाले है। पण जो ईने, लबूरयां करोगा,  तो पछे वींको हरजानो भरोगा। ईं जमीं ने बचाओ, बदाओ, जगां-जगां रूंखड़ा लगाओ। यो कर न कई बड़ई नी करोगा,  आपणी पीढ़ियां ने तारोगा, तरोगा ।                                    ~नेहा दशोरा