या जमीं


ईं जमीं में घणो जोर हे,

ईंकी तो बात और हे। 

पण होचो क थां कई करोगा,

जदी पाणी के बाते तरस्यां मरोगा।


या जमीं तो हगला ने जीवावे हे,

ईंके तो हर कोई खटावे हे। 

पण होचो क थां कई करोगा, 

जदी भाटा ढीन्डा में फरता फरोगा।


ईं जमीं के तो हगला खटावे हे,

कतरा जीव जनावर या जीवावे हे।

पण नार, चीतरा जो मारया करोगा,

तो दूजा जीवां ऊं बोझ्या मरोगा।


या जमीं तो फेर हरी वे जाई, 

ईंमे तो ओर बीज रे जाई।

पण होचो क थां कई करोगा, 

खावा बाते अन्न होदता फरोगा।


या जमीं तो आपूं आप जी लेई,

ईंको तो बगड़े नी कई। 

पण होचो क थां कई करोगा,

जद घर में घुस्या पाणी बचे तरता फरोगा।


या जमीं खाली मनखां के बाते नी हे,

अठे बाघ, हियाल्या, चड़ी-चड़कल्या बी हे।

जो याँकि जगां पे कब्जा करोगा, 

याने थांका घरे आवा ने मजबूर करोगा।


या जमीं तो आपां सबने पाले है,

या ईज थांको माको जीव हमाले है।

पण जो ईने, लबूरयां करोगा, 

तो पछे वींको हरजानो भरोगा।


ईं जमीं ने बचाओ, बदाओ,

जगां-जगां रूंखड़ा लगाओ।

यो कर न कई बड़ई नी करोगा, 

आपणी पीढ़ियां ने तारोगा, तरोगा ।

                                   ~नेहा दशोरा

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