सुख की खोज


सुख साध्य में है या साधन में,

सुख बाहर या घर आंगन में?

सुख उदय में है, या अस्ताचल में,

सुख चुप में, या कोलाहल में?

सुख स्वर्णिम स्वप्नों में है,

या है प्रत्यक्ष धरातल में?


सुख नील गगन, या सागर में,

सुख मणि-माणिक, या कांकर में?

सुख हौले मुस्कानों में है, या उन्मुक्त ठहाकों में,

सुख छोटे डग चलने में है, या है बड़ी छलांगों में?

सुख नन्हें पंखों में है या,

है सुख बड़ी उड़ानों में?


सुख नींद में है, या जगेरे में,

सुख शाम में है, या सवेरे में?

सुख शब्दों में है, या सुर में,

सुख बरगद में, या नवांकुर में?

सुख उनके दीदार में है,

या सुख है तसव्वुर में?


सुख सब कुछ पा जाने में, या है सब कुछ तजने में,

सुख दुनियादारी में है, या है भगवत भजने में?

सुख मलमल के थानों में, या गाढ़े की चादर में,

सुख जूठी तारीफों में है, या सुख सच्चे आदर में?

सुख सब सागर पी जाने में,

या सुख अपनी गागर में?


सुख कंचन महल, या झोपड़ में,

सुख ठाठबाट, या ओघड़ में?

सुख सत्य में है, या भ्रांति में,

सुख क्रांति में, या शांति में?

सुख बाह्य साज आभूषण में,

या सुख अंतर कांति में?


सुख बाह्य जगत के ठट्ठे में, या अंतर्मन के पर्दों में, 

सुख मित्र मंडली के संग है, या पुस्तक की गर्दों में?

सुख स्वच्छंद विचरने में, या नियम की जकड़न में,

सुख सदा त्यागते जाने में, या सुख मोह की पकड़न में?

सुख कर्त्तव्य की राह में है,

या सुख प्रीत की भटकन में?


सुख कलकल में, या हलचल में

सुख का कलरव में, या एकल में?


ना सोने में, ना पत्थर में,

ना कागज में, ना पत्तर में,

ना जंतर में, ना मंतर में,

सुख है बस तेरे अंतर में,

सुख तो है तेरे अंतस में।

                                ~नेहा दशोरा

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