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बरसात

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पोखर भरने वाला मौसम,  कविता करने वाला मौसम, चाय की प्याली और खुशहाली,  बातें करने वाला मौसम। उमगते तालों वाला मौसम,  भींजे बालों वाला मौसम, गरम पकौड़ों का सौंधापन,  नावें तरने वाला मौसम। ठंडी पुरवा वाला मौसम,  घोर बदरवा वाला मौसम,  हरियाली चादर फैलाता,  झूले भरने वाला मौसम। गरज-बरजने वाला मौसम,  मेह बरसने वाला मौसम, फसलों की मुस्कान का मौसम,  खेत संवरने वाला मौसम। यादों की बारात का मौसम,  बूंदों की सौगात का मौसम,  मन की परतों को पलटाकर,  आखें भरने वाला मौसम।                           ~नेहा दशोरा 

मन-बल तेरी ढाल है

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जीवन को मन भर के जीना  सबसे बड़ा कमाल है।  जीवन को खुलकर ना जीना,  ये भी बड़ा बवाल है। अपने मन की भी कर लेना,  अगर न कोई हर्जा हो। ख़ुद को भी शामिल कर लेना,  जब खुशियों का चर्चा हो।  जीते जी क्या जी भी पाए?  सबसे बड़ा सवाल है। ये करते या वो करते,  समय बीत ही जाएगा।  आयुष भरा ये नन्हा घट,  यों भी रीत ही जाएगा।  अभिलाषाएँ हैं अगणित, पर क्षण मिले उधार हैं। कभी पटखनी, कभी उछाल,  जीवन दंगल ही तो है।  कठिन समय में एक तसल्ली, ये भी संबल ही तो है।  तुझको हिम्मत रखनी होगी,  जबकि तू बेहाल है। चंचलता है मन की आदत, बंधन तो है जग की रीत।  कर्ण भेदते जगत राग में, गाते रहना मन का गीत। जीवन के हर एक रण में,  मन-बल तेरी ढाल है। समय की सीखें भी अमूल्य हैं,  और अमूल्य जग का हर पाठ।  हर दिन नया तजुर्बा है,  हर दिन नई सबक की गांठ।  सीखो तो ये अनुभव हैं,  सोचो तो जंजाल है। मन ही ज़ख्मों का मरहम,  मन ही छुरी कटार है।  मन ही नाव डुबा डाले,  मन ही बेड़ा पार है।  घोर निराशा के जंगल में,  मन ही तेरी मशाल है। मन ही तेरी सम्हाल है।  मन-बल तेरी ढाल है।                    ~ नेहा दशोरा

सुख की खोज

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सुख साध्य में है या साधन में, सुख बाहर या घर आंगन में? सुख उदय में है, या अस्ताचल में, सुख चुप में, या कोलाहल में? सुख स्वर्णिम स्वप्नों में है, या है प्रत्यक्ष धरातल में? सुख नील गगन, या सागर में, सुख मणि-माणिक, या कांकर में? सुख हौले मुस्कानों में है, या उन्मुक्त ठहाकों में, सुख छोटे डग चलने में है, या है बड़ी छलांगों में? सुख नन्हें पंखों में है या, है सुख बड़ी उड़ानों में? सुख नींद में है, या जगेरे में, सुख शाम में है, या सवेरे में? सुख शब्दों में है, या सुर में, सुख बरगद में, या नवांकुर में? सुख उनके दीदार में है, या सुख है तसव्वुर में? सुख सब कुछ पा जाने में, या है सब कुछ तजने में, सुख दुनियादारी में है, या है भगवत भजने में? सुख मलमल के थानों में, या गाढ़े की चादर में, सुख जूठी तारीफों में है, या सुख सच्चे आदर में? सुख सब सागर पी जाने में, या सुख अपनी गागर में? सुख कंचन महल, या झोपड़ में, सुख ठाठबाट, या ओघड़ में? सुख सत्य में है, या भ्रांति में, सुख क्रांति में, या शांति में? सुख बाह्य साज आभूषण में, या सुख अंतर कांति में? सुख बाह्य जगत के ठट्ठे में, या अंतर्मन के पर्दों में,  सु

राम

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चित्र साभार: डॉ. ऋतम उपाध्याय राम नाम का अर्थ सबलता,  राम नाम विश्वास है।  राम नाम का अर्थ सरलता,  राम नाम मिठास है। राम नाम के दो अक्षर में, सब जग की शीतलता है। राम नाम की एक टेर में,  मिटती सब व्याकुलता है। राम नाम में रमने वाले,  सब चिंता से ऊपर है।  राम नाम के जपने में,  सब प्रश्नों के उत्तर है। राम नाम में कोमलता है,  राम नाम संबल भी है।  राम नाम है कर्त्तव्यों का,  राम वास जंगल भी है। राम प्रेम का है पर्याय,  राम क्षमा का गुण भी हैं।  राम न्याय रक्षा का द्योतक,  राम कला निपुण भी हैं। राम त्याग की अतुल कहानी,  और राम तपस भी हैं।  राम दया की प्रतिमूर्ति, राम करुण अंतस भी हैं। राम गुणों के हैं आगार,  निर्गुण में भी बसते राम।  राम तत्व के ज्ञान में है,  सरल चित्त में हंसते राम। राम सत्य का दूजा नाम,  राम हृदय को दे विश्राम।  राम पराक्रम, राम प्रताप,  मर्यादा पुरुषोत्तम राम। शबरी की श्रद्धा हैं राम,  केवट तर गए खेकर राम।  चरण धूलि जब छुई अहिल्या,  पत्थर में थे फूंके प्राण। हनुमान के भगवन् राम,  भ्रात भारत के प्राणाधार।  लक्ष्मण के संग वन-वन घूमे,  सीता मैया के भर्तार। गुरुजन के भी प्य

मनोभाव

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मन अनगिन भावों की गठरी  मन की रेल चले बिन पटरी। मन-मनमानी, मन-नादानी, मन - चंचलता, मन-शैतानी। मन-असमंजस, मन-चिंताएं, मन- विवशता, मन-आशाएं।  मन समझाईश, मन हठ, मन-मीठापन, मन-कड़वाहट। मन-अच्छा, मन-खराब, मन-सच्चा, मन-दुराव।  मन-राही, मन - पड़ाव, मन-पीड़ा, मन - बहाव। मन-सांसत, मन-राहत, मन-बेचैनी, मन-अकुलाहट।  मन-शीशा, मन-चटकन, मन-गलियारा, मन-भटकन। मन-आधार, मन-संसार, मन-जिज्ञासा, मन-विचार। मन की बातें, मन ही जाने,  मन की बोली, मन पहचाने। मन-दुविधा, मन-उजास, मन-हर्ष, मन-उल्लास।  मन-दृढ़ता, मन - चंचल, मन-कायरता, मन-संबल। मन-उजियारा, मन - बेरंग, मन- अंधियारा, मन-सतरंग। मन–गीत, मन-संगीत, मन-बैर, मन-प्रीत।  मन-झंझा, मन-कोहराम, मन-थकन, मन-विश्राम। मन-संकोच, मन-उलझन, मन - विश्वास, मन - सुलझन।  मन-पतझड़, मन-सावन, मन-सहरा, मन-उपवन। मन-निःशब्द, मन-अज्ञान, मन-सोच, मन - संज्ञान। मन एक, रंग अनेक, मन पर भारी, मन की टेक। मन-भागे, मन-ठहरे, मन - चट्टान, मन-लहरें।  मन-खोह, मन-सुरंग, मन-आकाश, मन-पतंग। मन-सूक्ष्मता, मन-वैराट्य, मन-बंधन, मन-वैराग्य।                                                ~नेहा दशोरा

You Are More...

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You are more than your failures, more than your lacking,  You are more than their expectations,  more than their backing. You are more than what they tell you,  more than what you think. You are more than what they let you, You are more than on the brink. You are more than what you have, More than what you've been. You are more than just mediocrity,  More than in between. You are more than your fears,  More than your doubts.  You are more than your dreads, More than anxious bouts. You are more than their perception, More than their judging.  You are more than their reaction, More than their nudging. You are more than you are valued, More worthy than said.  You are more than your impressions, More precious than acknowledged. You are more than you realise,  And much more than they do. You are what no one else is,  And nobody can be you!                             ~Neha Dashora

इसका अर्थ ये नहीं...

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छोटा है अगर सुनो,  तुम्हारी दृष्टि का प्रसार। इसका अर्थ ये नहीं,  कि छोटा हो गया संसार। छोटे हैं अगर सुनो, तुम्हारी सोच के कदम।  इसका अर्थ ये नहीं, कि छोटा हो गया गगन। छोटी हैं अगर सुनो, तुम्हारी अपनी ख्वाहिशें।  इसका अर्थ ये नहीं,  कि औरों पे हों बंदिशें। छोटा है अगर सुनो, तुम्हारे मन का दायरा।  इसका अर्थ ये नहीं,  कि सिकुड़ गई धरा। छोटे हैं अगर सुनो,  तुम्हारी हसरतों के पर। इसका अर्थ ये नहीं, सभी के पर दो कतर। छोटे हैं अगर सुनो,  तुम्हारे नयन के सपन। इसका अर्थ ये नहीं,  कि हर नयन हो विपन्न। छोटा है अगर सुनो,  तुम्हारी सोच का सफर। इसका अर्थ ये नहीं,  सभी की सोच बेकदर। क्षीण है अगर सुनो, तुम्हारे स्वेद की दमक। इसका अर्थ ये नहीं, सितारे छोड़ दें चमक। मंद हैं अगर सुनो,  तुम्हारे आस-पास स्वर। इसका अर्थ ये कहां, कि तुम न स्वर रखो प्रखर। छोटा है अगर तुम्हें,  जो मिला है आसमां।  तुम उसे विस्तार दो,  खोज कर नई विमा। ~नेहा दशोरा