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Showing posts from July, 2022

कई करणो न कई नी करणो...

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झुकवा करतां  तो डटणो भलो,  बेमन ऊं करवा करतां नटणो भलो।  मन भेद ऊं तो बाड़ भली,  अणबोलण ऊं तो राड़ भली। बरत-उपवास तो सब करणो छावे, पण दूजां ने नी तलणो छावे।  अस्या बरतां ऊं तो जीमण भला,  अस्या उपवासां ऊं तो खावण भला। आलस करतां तो दोड़णो भलो,  गलत आदतां ने छोड़णो भलो।  बेठा रेवा करता कई करणो भलो,  बुद्धि ने ज्ञान ऊं भरणो भलो। सुख नी दे सक्या तो कई बात नी, कम वे रिप्या तो कई बात नी।  पण दुख कीने देणो कोनी,  रिप्यो उधार बि लेणो कोनी। अठे उठे जीव देणो नी छावे,  मन घणो चंचल वेणो नी छावे।  मन में कई ओर वे, केवे कई ओर,  अस्या मनखां को कठे ई नी ठोर। दूजां की पंचायती करता फरो,  आखा गाम में तो फरता फरो।  पण आपणा घर नेई देख लो,  आपणे बारणे ई पग टेकलो। पीठ पाछे जेर घोलणो गलत,  दो जणा के बच्चे बोलणो गलत।  जो वे मूंडे के देणी ई भली,  जो वे जस्यी वे, वेणी ई भली।                            ~नेहा दशोरा

जब मां थी...

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मां थी तो सब अच्छा था, मां थी तो मन बच्चा था। मां थी तो क्या ठाठ थे, सरल सभी पाठ थे। मां थी तो मनुहार थी, मां की वो पुकार थी। मां थी जब वो हंसती थी, घर में रौनक बसती थी। मां थी तो उजास था,  मां थी तो उल्लास था। मां थी थाल में रोटी थी  मां थी, तो मैं छोटी थी। मां थी तो सत्कार था,  मां थी तो अचार था।  मां थी तो ना फिकरें थी, घर बाहर की ख़बरें थी। मां थी सही सलाह थी,  मां थी आसां राह थी।  मां थी और हम बच्चे थे,  प्रेम भाव सब सच्चे थे। मां थी तो कर्मठता थी,  मां थी तो जीवटता थी।  मां थी तो हिम्मत थी,  ना कोई भी ज़हमत थी। मां थी तो थकन ना थी,  मां थी तो तपन ना थी।  मां थी, उसका आंचल था, कड़ी धूप में बादल था। मां भी तो गांव था, मां थी तो अलाव था। मां थी तो कोमलता थी, मां थी तो चंचलता थी। मां थी तो गम मद्धम था, जीवन में कुछ ना कम था। मां थी नेह का सागर था, मां थी तो घर, घर था।                      ~नेहा दशोरा

धरणी की तरह होना...

धरणी की तरह होना,  और धीर नहीं खोना। चुक जाएं अगर खुशियां, तुम फिर से फसल बोना। धरणी की तरह होना, और ओज नहीं खोना।  बर्बाद भी हो जाओ,  तुम फिर से चमन होना। धरणी की तरह होना,  शुचिता को नहीं खोना। लाख कपट छल हो,  तुम तो पावन होना। धरणी की तरह होना, और आंच नहीं खोना।  शीतल भी बने रहना, अंतर में दहन होना। धरणी की तरह होना,  और सांच नहीं खोना।  कितनी हो बली मिथ्या, तुम सत्य के सम होना। धरणी की तरह होना, और राह नहीं खोना। चलते-चलते जाना,  फिर भी अचल होना।                     ~नेहा दशोरा

तुम ज़रूरी हो...

ये धरती भी ज़रूरी है, अगर अंबर ज़रूरी है।  तुम इस घर को ज़रूरी हो, तुम्हें ये घर ज़रूरी है।  वो छत पर भीगते कपड़े, तुम्हीं को तो समटने हैं।  वो बड़ियां और वो पापड़, तुम्हीं को तो पलटने हैं। तुम्हें घर भर चमक जाए, ये भी तो ध्यान देना है।  जब चूल्हा जलाओगी, तभी सबका चबेना है। तुम्हें है देखना कोई, सामान कम ना हो। तुम्हीं डालोगी वो पर्दा, कि कोई भी खलल ना हो। तुम नींव हो, हो ईंट, तुम्हीं घर की कतारें हो।  तुम्हीं हो दीप देहरी का, तुम्हीं घर के उजाले हो। तुम त्योहार का उल्लास, घर भर में जगाती हो। तुम्हीं जीवंतता लाती, मकां को घर बनाती हो।  मगर करते हुए ये सब, जब दुत्कार दी जाती।  हमेशा टोक दी जाती, सदा फटकार दी जाती। तुम्हें मालूम क्या है, सब मालूम होकर भी। तुम कुछ भी नहीं करती, इतना बोझ ढोकर भी। जो तुम ये पहर आठों, खुद ही को खपाती हो। सभी के वक्त के सांचे, में जो खुद को समाती हो।  कभी खुद को भी देना वक्त, खुद की भी क़दर करना।  कभी खुद के ही भीतर का, वो छूटा सा सफर करना। कभी तो गौर फरमाना, हुआ करती थी तुम क्या-क्या। कभी तो खोजना फिर से, पढ़ा करती थी तुम क्या - क्या।  ज़रूरी है ये घर भी, मगर तुम

अगर मेह तकने की फ़ुर्सत नहीं है...

अगर मेह तकने की फ़ुर्सत नहीं है, फिर तो कोई भी मसर्रत नहीं है। तुम्हें जिंदगी की क़ुर्बत नहीं है, खुशियों की भी फिर सोहबत नहीं है। अगर हम में तुम में नुसरत नहीं है, तो समझो कि फिर तो उसरत बड़ी है। अगर आदमी में मुरव्वत नहीं है,   दुनिया में कुछ भी सलामत नहीं है। अगर हममें थोड़ी सदाक़त नहीं है,  हमारे दिलों में शराफ़त नहीं है। अगर इतनी सी भी लियाक़त नहीं है,  तो फिर काम की ये ज़ेहानत नहीं है।  इंसानियत की गर अलामत नहीं है, गर क़ौल-ओ-फ़े'ल में शबाहत नहीं है। दुनिया को उनकी ज़रूरत नहीं है,  कि जिनके दिलों में उल्फ़त नहीं है। अगर मेह तकने की फुर्सत नहीं है,  परिंदों को सुनने की आदत नहीं है।  तिजारत से थोड़ी भी फुरक़त नहीं है, तो जिंदगी में ज़हमत बड़ी है। अगर मेह तकने की फ़ुर्सत नहीं है,  फिर तो कोई भी मसर्रत नहीं है।                                  ~नेहा दशोरा मसर्रत–खुशी क़ुर्बत–क़रीबी सोहबत–साथ नुसरत–मदद,समर्थन उसरत–कठिनाई मुरव्वत–लिहाज, शील सदाक़त–सच्चाई शराफ़त–भलाई लियाक़त–खूबी, लायकी ज़ेहानत–अक्लमंदी अलामत–लक्षण क़ौल-ओ-फ़े'ल–कथनी और करनी  शबाहत–समानता उल्फ़त–प्रेम तिजारत–व्यापार फुरक़त

कणिकाएं–५

अंधेरे चीरना मुश्किल ही होता है, मगर इंसां इसके काबिल भी होता है। अगर बना रक्खो हौंसला तो, फलक इसमें शामिल भी होता है। झिझकता है, हिचकता है, डरता है, सहमता है, अपने आप को झुठला मुखौटे वो पहनता है। अगर चाहे वो मन से तो तूफां को मिटा डाले, रखे ख़ुद पे भरोसा तो समंदर को सुखा डाले। ~नेहा दशोरा 

मन यों भागे...

ये सुख है या सुख की छाया,  मन यों भागे, पिछड़े काया। ना दिन को है, रैन नहीं है,  क्यों इस मन को चैन नहीं है ? मन की दौड़ कहाँ  रुकती है,  मन की ज़िद कहाँ  झुकती है।  कितना भी समझा, बहला लो, मन की आस कहाँ चुकती है। मन माने तो सब अच्छा है,  मन के सच से सब सच्चा है।  मन की गांठ कहाँ खुलती है,  मन का ये धागा कच्चा है। मन की तो ये मन ही जाने,  मन ना माने, तो ना माने।  मन की डोर जुड़े वो अपने, ना जुड़ पाए वो बेगाने। मन ये एक अजब चिड़िया है,  कैसी आफत की पुड़िया है। हमको तुमको बांधे हैं जो,  वो भी मन की ही कड़ियां हैं। मन रीता हो, मन भर आए,  मन ही मन में खेल रचाए।  हेत बिगाड़े, मेल बनाए,  आंखों देखी, मन झुठलाए। मन बिगड़े तो जग सूनापन,  मन हुलसे तो वन भी मधुबन। क्यों बाहर सुख ढूंढ रहे हो,  पहले खोजो खुद अपना मन । हर्ष-विषाद सभी का आंगन।  खुशियां-गम हैं सब अंतर्मन।  खुद से खोलो खुद अपना मन।  जाओ टटोलो खुद अपना मन।                       - नेहा दशोरा

पर्दा गिरना

पर्दा गिरता गिर ही जाता  है हर एक तमाशे में । कोई कसक छुपी रहती है, मस्ती भरे ठहाके में। तुम अपनी हस्ती दिखला कर,  हो सकता खो जाओगे ।  पर अपनी हस्ती झुठला कर,  यार कहां तक जाओगे?  कोई फर्क नहीं पड़ता है,  कितने ऊंचे बैठे हो।  कोई मोल नहीं रहता है गर तुम सबसे ऐंठे हो। अपनी पीड़ा गाते रहना, कोई सुन भी लेगा तो। अपने कष्ट तुम्हीं को सहना  साथ कहां तक देगा वो? कितना सहना, कितना कहना, हर एक का पैमाना है। पानी सर के ऊपर जाए इसे छलक ही जाना है। कोई तीर कमानी छोड़े, लौट कहां आ पाता है। कोई शब्द हलक से निकले, बड़ी दूर तक जाता है। इससे कहते हैं सब दाने, जब भी मुंह को खोलो तुम। अपनी बातें, अपने वादे, सोच समझ कर बोलो तुम। कितने गहरे, कितने उथले, शब्द बता ही देते हैं। मन की सारी उथल–पुथल को, भाव जता ही देते हैं। जीवन का मतलब समझो, तब जाकर कुछ बात बने। यादें तो वो ही मीठी हैं, जो कि सबके साथ बने।                           – नेहा दशोरा 

People

I read people, I heed people  And I know, I need people Keeper people, ditch people,  always stuck, sandwich people. Sure people, unsure people  Secure & insecure people. Bad people, sad people, Always fearing, afraid people. Running people, stunning people,  Oh! so smart, or cunning people. Chum people, dumb people, Old people & young people. Sun people, cloud people, Always in a little doubt people. Far people, near people,  Always smile or tear people. Pity people, witty people,  Beauty people, duty people. So people, such people, Too less & too much people Sugar people, bitter people,  Ever staying or quitter people Obedient people, excellent people, Always trying to vent people. Work people, lurk people,  Atonishing and jerk people. Fun people, growl people, World is a place to all people.  - Neha Dashora